गत कुछ शताब्दियो से हो रहे सतत आक्रमणों में हमने गांधार (अफगानिस्थान), ब्रह्मदेश (म्यानमार), सिंध-प. पंजाब (पाकिस्तान), पू. बंगाल (बांग्लादेश), त्रिविष्टप (तिब्बत) ये अपने मातृभू के अंग खोकर उसे अपंग बना दिया है ।
अपने देश का क्षेत्रफल ५५,६२,८२८ वर्ग-किमी से घट कर ३२,८७,२४० वर्ग-किमी हो गया है । अर्थात अपना ४०% प्रतिशत भूभाग हमने गँवाया है ।
जहाँ-जहाँ हिन्दू घटा, वहाँ-वहाँ देश कटा है ।
जो-जो भूभाग हमने खोया है, वह राष्ट्र विघातक गतिविधियों में सक्रीय हुआ है ।
क्या इसी क्षत-विक्षत भारत के लिये ही हमारे पूर्वजो ने अपने प्राण गँवाये थे ?
अपने राष्ट्रगान में हम गाते है – ’पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्राविड उत्कल वंग’ । कहाँ है यह सिंध? कहाँ है आधा पंजाब और आधा बंगाल ? क्या वहाँ भी यही राष्ट्रगान गाते है ?
१९४७ में अधिकांश जनता अखण्ड भारत चाहती थी, फिर भी क्यो हुआ विभाजन ? - तुष्टिकरण की नीति के कारण !! यह कारण तो आज भी विद्यमान है !! तो क्या फिर से विभाजन होगा ?
भारत अखंड करना है । अपने वीर क्रान्तिकारियों का बलिदान व्यर्थ नहीं गँवाना है ।
भारत फिर से अखण्ड होता है, तो अनेक समस्याए अपने आप हल हो जाएँगी
अपना सुरक्षा पर वार्षिक खर्च रु. ९०,००० करोड़ है । इसम बडी बचत होगी ।
काश्मीर, पूर्वांचल आदि उग्रवाद-ग्रस्त स्थान पर पयर्टन व्यवसाय की वृद्धि होगी |
हम सभी अपने सच्ची सांस्कृतिक विरासत का अंग बनकर सही अर्थ में भारत को वैभवशाली बना पायेंगे ।
तो आईये ! इस स्वतन्त्रता दिवस की पूवर्संध्या में सकल्प ले –
हम उस समर्थ, सशक्त, संगठित, अखण्ड भारत का पुनः निर्माण करेंगे !!
॥ भारतमाता की जय ॥
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